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बुधवार, 12 जून 2024

प्रेम और अनुशासन

प्रेम और अनुशासन
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आजकल माता-पिता अपने बच्चों से जरुरत से ज्यादा लाड़-प्यार दर्शाते है, बच्चों पर अंकुश रखना भी आवश्यक है। इसके लिए प्रेम और और अनुशासन दोनो आवश्यक है। प्रेम और अनुशासन दोनो होंगे तभी प्रेम का असर होगा। बच्चों की अच्छी और बुरी आदतें के लिए माता-पिता ही सबसे अधिक जिम्मेदार होते है। परंतु आजकल देखा जाता है कि वे बच्चों को उचित-अनुचित का व्यवहार सिखाने की बिल्कुल कोशिश नही करते। वे अनुचित लाड़-प्यार दिखाकर उन पर खुब पैसा लुटाते है। सुख- समृद्धि और ऎशो-आराम का जीवन जीने की समस्त सामग्री उपलब्ध कराते है, पर वे एक क्षण के लिए भी यह नही सोचते कि कैसे वे बच्चों को सदगुण विकसित करने की प्रेरणा दें। 
माता- पिता की कर्तव्य है कि वे बच्चों को उचित व्यवहार और नैतिकता के विकास की प्रेरणा दें। उन्हें केवल जीवन गुजर- बसर करने को प्रोत्साहित करना ठीक नही, माता-पिता को तभी प्रसन्न होना चाहिए जब उनके बच्चे साफ- सुथरा जीवन जिएं, अच्छा नाम कमाएं और अच्छा व्यवहार करें। यही नही पुत्र के जन्म मात्र पर खुशी मनाना तो मूर्खता ही है।
धृतराष्ट्र के सौ पुत्र थे- कौरव। उसे अच्छी तरह मालुम था कि वे सभी दुष्ट है और गलत राह पर जा रहे है। उसे यह भी पता था कि उसके भाई के पुत्र- पांडव, धर्म की राह पर चलने वालें है और कौरव उनका बहुत अपमान और उन पर अत्याचार कर रहे है। महर्षि व्यास ने कई बार धृतराष्ट्र को समझाया कि कौरवों के प्रति अपने अनुचित लाड़-प्यार के कारण वह पांडवों पर अत्याचार न होने दे, परंतु उन्होंने महर्षि व्यास की सलाह पर कोई ध्यान नही दिया, परिणामस्वरूप उसे पाप का भागी बनना पड़ा। । 
तात्पर्य यह है कि माता- पिता का कर्तव्य केवल उन्हें भोजन या शिक्षा उपलब्ध कराने या सांसारिक विषयों का ज्ञान प्राप्त करा देने मात्र से पुरा नही हो जाता, उन्हें बच्चों को सही मुल्यों के बारे मे भी बताना चाहिए।
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