जीवन की सार्थकता
जीवन मे यही देखना महत्त्वपूर्ण नही है कि कौन हमसे आगे है और कौन हमसे पिछे। यह भी देखना चाहिए कि कौन हमारे साथ है और हम किसके साथ।
मानव जीवन बहुमूल्य है।
अतः इसे सार्थक बनाने का प्रयास सभी को करना चाहिए।
नर नही वह जन्तु है जिस नर को धर्म का भान नही।
व्यर्थ है जीवन उसका जिसको आत्म तत्व का ज्ञान नही।
पैसों के चन्द टुकरों पर अपना इमान बेचने वालों, मुर्दा वह देश जहाँ पर धर्मों का सम्मान नही।
जीवन की सार्थकता का एक सबसे बड़ा पहलु है, वो है प्रामाणिकता, अतः अपने कर्तव्य का सही ढंग से पालन करना ही प्रामाणिकता है, एवं जीवन की सार्थकता है।
मानव जीवन बहुमूल्य है। अतः इसे सार्थक बनाने का प्रयत्न सभी को करना चाहिए। जीवन की सार्थकता आध्यात्मिकता, नम्रता एवं प्रामाणिकता से सिद्ध होती है। धर्म वह है जो सबको धारण करता है। लोक और परलोक दोनो को सुधारने के लिए धर्म का अनुपालन जरुरी है। यही सच्चा साथी है। मृत्यु होती है तो सगे-संबंधी, धन-सम्पत्ति, मकान-दुकान सब कुछ यहीं छुट जाता है। कुछ भी साथ नही जाता है। केबल धर्म और कर्म ही साथ जाता है।
वास्तव मे धर्म ही है, जिसके आधार पर मानव और पशु मे भेद किया जा सकता है। आहार, निद्रा ,भय आदि मनुष्यों और पशुओं, दोनो मे ही सक्रिय रहते है। पर मानव मे धर्म की विषेशता है, जबकि पशुओं के लिए धर्माचरण असंभव है। धर्म पालन जीवन की सार्थकता है।
जीवन की सार्थकता
बुद्धिमान व्यक्ति धनी और विद्वान बन जाने पर विनम्र बन जाता है। यदि कोई व्यक्ति गुण और विद्या मे कुछ कम भी हो पर यदि वह विनम्र हो तो लोग उसे अधिक मान देते है। नम्रता का व्यवहार सभी को प्रिय लगता है।
सेवा सभी का करना मगर आशा किसी से भी न रखना, क्योंकि सेवा का वास्तविक मुल्य भगवान ही दे सकते है, इन्सान नही ?
किसी को दुःख देकर कभी खुशीयों की उम्मीद मत करना। खुशीयाँ उनको मिलती है जो दुसरों को खुशी देखकर खुश होते हैं।
यही है जीवन की सार्थकता है।
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