जीवन जीने की कला
- जीवन जीने की कला मे निहित है। जिस किसी भी तरह अनगढ़ तौर-तरिके से जीते रहने का नाम जीवन नही है। दरअसल जो जीने की कला जानते है, केवल वही यतार्थ मे जीते है। जीवन का क्या अर्थ है ? क्या है हमारे होने का अभिप्राय ? हम क्या है और क्या पाना चाहते है। इन सवालों के ठीक-ठाक उत्तरों मे ही जिंदगी का रहस्य समाया है। यदि जीवन मे गंतव्य का बोध न हो, तो भला गति सही कैसे हो सकती है, और यदि कहीं पहुंचना ही न हो, तो संतुष्टि कैसे पाई जा सकती है।
- बेरुह होकर जीने का कला मे जानता नही, कुछ मुझे मालुम नही और कुछ मे मानता नही। जी रहे है कि बस जीना है, ये तो कोई तरिका न हुआ, विना जिंदादिली के जीये, ये तो कोई सलिका न हुआ।लगता था जिंदगी को बदलने मे वक्त लगेगा, पर क्या पता था बदला हुआ वक्त जिंदगी बदल देगा। हर तकलीफ से इन्सान का दिल दुखता बहुत है, पर हर तकलीफ से इन्सान सिखता भी बहुत है।
- इन्सान इश्वर की ऐसी रचना है, जो सिर्फ अपना ही नही कई पीढ़ियों का उद्धार करती है।दो पल की जिंदगी के दो नियम, किसी को प्रेम देना सबसे बड़ा उपहार है। और किसी का प्रेम पाना सबसे बड़ा सम्मान है। जीवन बहुत छोटा है उसे अच्छे तरह से जीयें, प्रेम दुर्लभ है उसे पकड़ कर रखें, क्रोध बहुत खराब है, उसे दबाकर रखें। भय बहुत भयानक है, उसका सामना करें, स्मृतियाँ बहुत सुखद है उन्हें संजोकर रखें।
जिवन जीने की कला
- जिसके पास सम्पूर्ण जीवन के अर्थ का विचार नही है, उसकी दशा उस माली की तरह है, जिसके पास फुल तो है और उसकी माला भी बनाना चाहता है, लेकिन उसके पास ऐसा धागा नही है, जो उन्हें जोड़ सके। आखिरकार वह कभी भी अपने फुलों की माला नही बना पाएगा। जो जीवन जीने की कला से वंचित है, समझना चाहिए कि उनके जीवन मे कोई दिशा नही है। उनके समस्त अनुभव व्यर्थ रह जाते है। उनसे कभी भी उस उर्जा का जन्म नही हो पाता, जो ज्ञान बनकर प्रकट होती है। जीने की कला से वंचित व्यक्ति जीवन के उस सम्रग अनुभव से सदा के लिए वंचित रह जाता है, जिसके अभाव मे जीना और न जीना बराबर ही हो जाता है।
जीवन को जीने की कला
- ऐसे व्यक्ति का जीवन उस वृक्ष की तरह है, जिसमे न तो कभी फुल लग सकते है और न फल। ऐसा व्यक्ति कभी भी आनंद की अनुभूति नही कर सकता। आनंद की अनुभूति जीवन को कलात्मक ढंग से जीने, उसे समग्रता मे अनुभव करने पर होती है।जीवन मे यदि आनंद पाना है, तो जीवन के फुलों की माला को बनाना होगा। जीवन के समस्त अनुभवों को एक लक्ष्य के धागे मे कलात्मक तरिके से गुंधना होगा। जो जीने की कला को नही जानते, वे जिंदगी की सार्थकता से वंचित रह जाते है।
- मकसदे जिंदगी समझ कीमते जिंदगी न देख। इस्क ही खुद है बंदगी इस्क मे बंदगी न देख।कबीरा मन निर्मल भयो जैसे गंगा नीर। पिछे पिछे हरि फिरे कहत कबीर कबीर।व्यक्ति क्या है यह महत्त्वपूर्ण नही है। व्यक्ति मे क्या है यह ज्यादा महत्वपूर्ण है।अपने आंखों को हमेश आसमान की तरफ रखो, और अपने पैरों को हमेश जमीन पर।
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