बड़े भाग मानुष तन पावा
संसार मे मानव को प्राप्त ज्ञान प्रभु की विशेष देन है। जिसकी मदद से वह प्रभु दर्शन कर सकता है जो किसी भी अन्य जन्म मे संभव नही है। यही कारण है कि देवता भी मानव जीवन पसंद करते है तथा पृथ्वी पर मानव जीवन धारण करने हेतु सदैव लालायित रहते है। जीनसे उन्हें मोक्ष प्राप्त हो सके।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है।
बड़े भाग मानुष तन पावा। सुर नर मुनि सब ग्रन्थन गावा।
कहा जाता है मनुष्य शरीर अनमोल है, क्योंकि की ज्ञान की प्राप्ति केवल इसी से संभव है। मानव शरीर प्राप्त होने पर ज्ञात होता है कि यह शरीर नश्वर एवं विश्व परिवर्तनशील है। इस प्रकार की धारणा बनाकर इन्द्रियजन्य विषयों को त्यागकर तथा सत्य असत्य का विवेक कर ईश्वर का साक्षात्कार किया जा सकता है।यदि हम शरीर को तुच्छ समझकर उसकी उपेक्षा करेंग तो हम ईश्वर दर्शन से वंचित रहेंग और यदि हम उसे मूल्यवान समझकर मोह करेंग तो हम इन्द्रिय सुखों की ओर बढ़ेंगे। अत: उचित तो यही है कि इस नश्वर शरीर को न तो उपेक्षा करें और नही आसक्ति रखें। ईश्वर दर्शन एवं आत्म साक्षात्कार ही उद्देश्य होना चाहिए।
कहा जाता है कि अनेक प्राणियों की उत्पत्ति करने के पश्चात भी ईश्वर को संतोष नही हुआ। कारण यह है कि कोई आदमी भी आदमी उसकी अलौकिक रचना एवं सृष्टि को समझने मे समर्थ न हो सका। इसी कारण उसने एक विशेष मानव की उत्पत्ति की ओर उसे ज्ञान का विशेष गुण प्रदान किया। तब ईश्वर ने देखा कि मानव उसकी लीला अदभुत रचनाओं तथा ज्ञान को समझने का योग्य सिद्ध हुआ। तब उन्हें हर्ष एवं संतोष हुआ। इसिलिए मानव जन्म प्राप्त होना बड़े सौभाग्य की बात होती है।
मानव जन्म अति दुर्लभ है।
मानव जन्म का महत्व तब और बढ़ जाता है जब हम प्रकृति के समस्त विधाओं का आनन्द लेते हुए इस जीवन को सार्थक करते है और ईश्वर को धन्यवाद देते है। आध्यात्मिक और मानसिक सुख केवल मानव जीवन पाकर ही संभव है। बिना मानव जन्म के यह सब नही मिल सकता कहा जाता है कि मनुष्य सबकुछ पा सकता है। अन्य दुसरे प्राणी के लिए यह संभव नही।
नष्ट हुआ धन पुनः मिल जाता है, रूठे हुए मित्र और बिछड़े हुए
मित्र दुबारा मिल जाते हैं। पत्नी का बिछोह, त्याग और देहांत हो जाने पर दूसरी पत्नी भी मिल जाती है। जमीन, जायदाद, देश और राज्य दुबारा मिल जाते
हैं और ये सब बार-बार प्राप्त हो जाते हैं। लेकिन यह मानव तन बार-बार नही मिलता।
क्योकि नरत्वं दुर्लभं लोके इसका मतलब है इस संसार में नर देह प्राप्त करना दुर्लभ
है, ऐसा हमारे शास्त्रों में लिखा
गया है।
बता दें कि मनुष्य योनि को सर्वश्रेष्ठ इसलिए माना
गया है कि इस योनि में ही जन्म-जन्मांतर से मुक्ति मिल सकती है। अतः ईश्वर की
भक्ति और शुभकार्यो में अपने समय को व्यतित करना चाहिए।
अर्थात यह नर शरीर साधन का धाम और मोक्ष का दरवाजा
है। इसे पाकर भी जो परलोक को नही प्राप्त कर पाता है वह आभागा है।
मानव प्रभु की अनुपम कृति है, और प्रकृति भी परमात्मा की बनाई हुई है | ईश्वर को दोनों ही बहुत ही प्रिये है |
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